Chauri Chaura Kand: एक साल में बदल गई चौरी चौरा की तस्वीर और तकदीर, नए सिरे से लिखा गया गौरवशाली इतिहास
आजादी का अमृत महोत्सव के तहत एक वर्ष में चौरी चौरा की तस्वीर और तकदीर बदल गई। गौरवशाली इतिहास को उभारने के उद्देश्य से सरकार द्वारा प्रयास किया गया तो नगर पंचायत मुंडेरा बाजार का नाम चौरी चौरा हो गया।
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। आजादी का अमृत महोत्सव का दीप जला तो 75 वर्ष की उपलब्धियों पर जश्न मना ही, गौरवशाली अतीत भी चमक उठा। प्रधानमंत्री मोदी की परिकल्पना को योगी आदित्यनाथ की सरकार प्रदेश में उतारने में जुटी तो इसका आलोक चौरी चौरा आ पहुंचा। सरकारी प्रयासों की बाती से गौरव की यह थाती आलोकित होने लगी। नगर पंचायत मुंडेरा बाजार का नाम बदलकर चौरी चौरा कर दिया गया और पर्यटन स्थल के रूप में इसे विकसित करने का खाका खिंच गया। आजादी का अमृत महोत्सव के तहत एक वर्ष में चौरी चौरा की तस्वीर बदली, बल्कि तकदीर भी संवर रही है।
गौरवशाली इतिहास का हुआ पुनर्लेखन
इस कड़ी में सबसे खास कदम रहा यहां के गौरवशाली इतिहास का पुनर्लेखन। अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के तहत काम शुरू हुआ और इतिहास संकलन समिति के प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी के निर्देशन में नए सिरे से इसका इतिहास लिखा गया। चौरी चौरा की घटना, जो कि एक जनाक्रोश का परिणाम थी उसे अंग्रेजी शासन के दौरान लिखे इतिहास में कांड के रूप में रेखांकित किया गया था। योगी सरकार के प्रयासों से स्वतंत्रता संघर्ष की इस घटना को मान मिला और दस्तावेजों में यह विषय चौरी चौरा जनाक्रोश के रूप में पहचान पा गया। प्रदेश सरकार ने भी यहां के गौरवशाली इतिहास को और उभारने का प्रयास किया और स्थानीय नगर पंचायत मुंडेरा बजार को चौरी चौरा का नाम दे दिया।
एक साल पहले हुआ था शताब्दी वर्ष समारोह
एक वर्ष पूर्व यहां शताब्दी वर्ष समारोह का हुआ था। पीएम मोदी भी कार्यक्रम में ऑनलाइन जुड़े थे। सरकार की मंशा को समझते हुए स्थानीय प्रशासन ने चौरी चौरा के विकास की वृहद योजना बनाई। इसी क्रम में चौरी चौरा शहीद स्मारक स्थल का कायाकल्प किया गया। इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का खाका तैयार किया गया। यहां पर ओपन एयर थियेटर, अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय के निर्माण की योजनाएं प्रस्तावित हैं। विकास के साथ यह क्षेत्र कदमताल करे, इसके लिए यहां फ्लाईओवर भी बन रहा है।
फूटा था जनाक्रोश, रोक दिया गया असहयोग आंदोलन
चार फरवरी, 1922 को स्वयंसेवकों ने थानेदार द्वारा अपने साथी भगवान अहीर की पिटाई के विरोध में थाने तक शांतिपूर्ण जुलूस निकालने की योजना बनाई। निहत्थे स्वयंसेवकों पर प्रशासन ने पहले लाठीचार्ज किया, फिर गोलीबारी। इसमें 26 लोगों की मौत हो गई। इसके बाद जनमानस उत्तेजित हुआ और जनाक्रोश के चलते थाना फूंक दिया गया। थाना फूंकने की घटना में 23 पुलिसकर्मी मारे गए। इसके बाद 12 फरवरी, 1922 को महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया।