Shani Jayanti 2024: शनि जयंती पर जरूर रखें इन बातों का ध्यान, जानिए इसका धार्मिक महत्व
शनि जयंती (Shani Jayanti 2024) का दिन बेहद शुभ माना जाता है। शनिदेव भगवान शिव के परम भक्त हैं। उन्हें सेवा और व्यापार जैसे कर्मों का स्वामी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जहां भी शनिदेव सीधी दृष्टि डालते हैं वहां उथल-पुथल मच जाती है। इस बार शनि जयंती 8 मई को मनाई जाएगी तो चलिए इस दिन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों को जानते हैं -
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shani Jayanti 2024: सनातन धर्म में शनि देव की पूजा का खास महत्व है। ज्योतिष में भगवान शनि को न्याय का देवता माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वे कर्मों के आधार पर फल देते हैं। शनिवार और शनि जयंती का दिन भगवान शनि की पूजा के लिए समर्पित है। इस बार शनि जयंती वैशाख माह 8 मई, 2024 दिन बुधवार को मनाई जाएगी। यह साल में दो बार मनाई जाती है।
ऐसी मान्यता है जो लोग इस दिन भाव के साथ रवि पुत्र की पूजा करते हैं उन्हें मनचाहा वरदान प्राप्त होता है, तो आइए इस दिन से जुड़ी कुछ खास बातों को जानते हैं -
शनि जयंती 2024 का धार्मिक महत्व
शनि जयंती का हिंदुओं के बीच बड़ा महत्व है। शनिदेव भगवान शिव के परम भक्त हैं। उन्हें सेवा और व्यापार जैसे कर्मों का स्वामी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जहां भी शनिदेव सीधी दृष्टि डालते हैं वहां उथल-पुथल मच जाती है। ऐसा कहा जाता है कि एक बार जब रावण ने भगवान शनि को कैद कर लिया था, तब हनुमान जी ने उन्हें वहां से छुड़ाया।
तब शनिदेव ने प्रसन्न होकर कहा था कि जो भक्त बजरंगबली की पूजा भाव के साथ करेंगे, उनपर कभी शनि दोष का प्रभाव नहीं पड़ेगा। साथ ही उन जातकों पर उनका आशीर्वाद सदैव बना रहेगा।
शनि जयंती पर रखें इन बातों का ध्यान
- सुबह उठकर पवित्र स्नान करें।
- शनि मंदिर जाएं और पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
- शनि देव के वैदिक मंत्रों का 108 बार जाप करें।
- जरूरतमंदों को भोजन और कपड़े का दान करें।
- तामसिक चीजों का सेवन न करें।
- किसी से विवाद न करें।
- महिलाओं का अपमान न करें।
- ज्यादा से ज्यादा धार्मिक कार्य करें।
- किसी की बुराई न करें।
शनि वैदिक मंत्र
- ऊँ शन्नोदेवीर-भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः।।
शनि गायत्री मंत्र
- ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।।
शनि महामंत्र
- ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥
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