नई दिल्ली, अनुराग मिश्र।

अठारहवीं लोकसभा के लिए दूसरे चरण का मतदान हो चुका है। जागरण न्यू मीडिया मतदाताओं को जागरूक करने के लिए ‘मेरा पावर वोट- नॉलेज सीरीज’ लेकर आया है। इसमें हमारे जीवन से जुड़े पांच बुनियादी विषयों इकोनॉमी, सेहत, शिक्षा, इन्फ्रास्ट्रक्चर और सुरक्षा पर चर्चा की जाएगी। हमने हर सेगमेंट को चार हिस्से में बांटा है- महिला, युवा, शहरी मध्य वर्ग और किसान। इसका मकसद आपको एंपावर करना है ताकि आप मतदान करने में सही फैसला ले सकें। नॉलेज सीरीज में बात शिक्षा और ग्रामीण भारत की।

जनगणना 2011 की अंतरिम रपट के अनुसार आबादी का 68.84 फीसदी हिस्सा अब भी गांवों में रहता है। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा पर वास्तव में अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। नई शिक्षण विधियों के लागू होने से शहरी क्षेत्रों में शिक्षा का स्तर बढ़ गया है; ग्रामीण भारत में नियोजित शिक्षण तकनीकें अभी भी पारंपरिक हैं। भारत तकनीकी रूप से प्रगति कर रहा है; हालांकि, दुर्भाग्य से, इस विकास की छाप अभी तक ग्रामीण क्षेत्रों तक नहीं पहुंच पाई है। इससे शहर और ग्रामीण छात्रों में डिजिटल विभाजन पैदा हो गया है। कई विसंगतियों के बावजूद भी ग्रामीण भारत में शिक्षा की अलख बढ़ी है लेकिन इसे अभी काफी मजबूत होना शेष है। ग्रामीण शिक्षा के क्षेत्र में आए आमूल-चूल बदलावों और चुनौतियों को लेकर बात करने के लिए हमने आईपी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन के विजिटिंग फेलो डा. दुर्गेश त्रिपाठी और बेनेट यूनिवर्सिटी के आईक्यूएसी के डायरेक्टर और न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस सोसाइटी के सदस्य डा. मनीष भल्ला से बात की।

भारत में स्कूल न जाने वाले बच्चों की संख्या अधिक है। इस आंकड़े का विनाशकारी बहुमत ग्रामीण भारत का है। ग्रामीण इलाकों में चल रही शिक्षा प्रणाली के उत्थान की जरूरत है। दुर्गेश त्रिपाठी इस बारे में कहते हैं कि भारत विकासशील देश है और विकसित होने की प्रक्रिया में है। ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों का शिक्षा के अलावा अन्य कामों में भी इस्तेमाल करते हैं। वह कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग सोचते हैं कि पढ़ाई करने के बाद आउटकम क्या होगा। वहीं जो समय वह शिक्षा में निवेश कर रहे हैं कि उसका परिणाम दस से पंद्रह सालों बाद क्या होगा। वहीं प्राथमिक शिक्षा केंद्र लोगों के घरों से कितनी दूरी पर है।

ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा केंद्रों की संख्या बढ़ानी होगी साथ ही उनकी पहुंच और एक्सेसबिलिटी को भी मजबूत करना होगा। जो पाठ्य पुस्तकें दी जाए वह पूरी तरह से मुफ्त हो। नि:शुल्क शिक्षा देने से निश्चित रूप से साक्षरता दर में वृद्धि होगी क्योंकि अधिक से अधिक माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजने के इच्छुक होंगे यदि उन्हें अपनी शिक्षा के लिए भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है। प्रधान स्तर पर गांवों में जागरूकता अभियान चलाए जाए। इससे दीर्घकालिक लक्ष्य गांवों में शिक्षा को लेकर हासिल किए जा सकेंगे।

डा. मनीष भल्ला कहते हैं कि उचित बुनियादी ढांचे की कमी के कारण ग्रामीण शैक्षणिक संस्थानों को बहुत नुकसान होता है। ग्रामीण भारत के स्कूलों में पर्याप्त संख्या में प्रशिक्षित शिक्षक नहीं हैं। इसके अतिरिक्त, शिक्षार्थी-शिक्षक अनुपात काफी अनुचित है जिससे प्रत्येक छात्र पर ध्यान देना और भी कठिन हो जाता है।

ASER रिपोर्ट ग्रामीण भारत में 14 से 18 वर्ष की आयु के आधे से अधिक युवा साधारण विभाजन समस्याओं को हल नहीं कर सकते, जबकि ये कौशल आदर्श रूप से कक्षा 4 के छात्रों को सिखाया जाता है। रिपोर्ट से पता चलता है कि अंग्रेजी छात्रों के लिए बड़ी चुनौती है। गणित की भाषा में कहें तो कक्षा 3 के वो छात्र जो कम से कम ‘घटाव’ जानते हैं, उनके प्रतिशत में भी गिरावट आई है। यानी ऐसे बच्चों की जो संख्या साल 2018 में 28.2 प्रतिशत थी वो 2022 में 25.9 प्रतिशत हो गई है। हालांकि जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में इनके आंकड़ों ने थोड़ी राहत ज़रूर दी है। इन तीनों राज्यों में आंकड़े लगभग स्थिर हैं। जबकि हरियाणा, मिज़ोरम और तमिलनाडु में क़रीब 10 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है।

तमिलनाडु में 2018 में ये प्रतिशत 25.9 था जो 2022 में 11.2 हो गया, मिज़ोरम में 2018 में इसकी संख्या 58.9 थी जो 2022 में घटकर 42 प्रतिशत हो गई, जबकि हरियाणा में भी 10 फ़ीसदी गिरकर 41.8 प्रतिशत हो गई जो 2018 में 53.9 थी।

कक्षा 8 के बारे में कहती है कि, बुनियादी गणित के मामले में प्रदर्शन थोड़ा अलग है। राष्ट्रीय स्तर पर भाग का सवाल हल कर पाने वाले बच्चों का अनुपात थोड़ा बेहतर हुआ है। ये 2018 में 44.1 प्रतिशत था, जबकि 2022 में 44.7 प्रतिशत हो गया है। रिपोर्ट कहती है कि ये जो बहुत थोड़ी सी बढ़ोत्तरी है ये लड़कियों और सरकारी स्कूल के बच्चों की ज़्यादा सीखने की इच्छा के कारण हुआ है। जबकि ‘भाग’ बनाने के सवालों में लड़कों और निजी स्कूलों की क्षमता में गिरावट हुई है।

भल्ला कहते हैं कि हमारे यहां शुरुआत तो बेहतर होती है लेकिन कभी-कभी हम भटक जाते हैं। वह कहते हैं कि बच्चों की ग्रामीण क्षेत्रों में स्किल पैदा करना जरूरी है। बड़े संस्थानों, एनजीओ को गांव में एक्टिविटीज करने की आवश्यकता है। एक तरह से कहें तो उन्हें अपने इलाकों के अनुरूप गांवों को गोद लेना होगा ताकि ग्रामीण शिक्षा को मजबूत किया जा सकें। गणित न आने की वजह वहां गणित के बेहतर टीचर न होना है। वहां बेहतर शिक्षक भेजे जाए इससे बच्चों में रूचि बढ़ेगी। नई शिक्षा नीति को अभी पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है। आने वाले समय में सकारात्मक बदलाव आएंगे। ग्रामीण सेक्टर में टीचरों की स्किल को दुरूस्त करने की महती आवश्यकता है। दुर्गेश त्रिपाठी कहते हैं कि क्वालीफाइड होना और अपडेट होना दोनों अलग बात है। जिस तरीके से समाज और देश बदल रहा है। इंफ्रास्ट्रक्चर, डिजिटल डेवलपमेंट, स्किल एजुकेशन को लेकर देश में सकारात्मक बदलाव आ रहे हैं। ऐसे में पांच साल में एजुकेशन सिस्टम में रिफ्रेशर कोर्स जरूरी है।

भल्ला कहते हैं कि नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी एक बेहतर विकल्प है। वन नेशन वन डाटा से सबको सारी किताबें उपलब्ध होगी। नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों के लिए शानदार विकल्प है। अस्सी के दशक में जब कंप्यूटर आया था तो लोगों के मन में इसे लेकर डर था। तब कई शॉर्ट टर्म कोर्स लांच किए गए जिसने लोगों को काफी सहूलियत पहुंचाई।